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राहुल गांधी: अंग्रेज़ी शर्म की नहीं, सशक्तिकरण की भाषा है – हर बच्चे को सिखाई जानी चाहिए

नई दिल्ली, जून 22, 2025 – कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को भारत में अंग्रेज़ी की सार्वभौमिक शिक्षा की पुरजोर वकालत की। उन्होंने इसे शर्म का नहीं, बल्कि सशक्तिकरण और समानता का एक शक्तिशाली उपकरण बताया। सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने भाजपा-आरएसएस पर आरोप लगाया कि वे गरीब बच्चों को जानबूझकर अंग्रेज़ी से दूर रख रहे हैं ताकि वे सत्ता से सवाल न कर सकें और आगे न बढ़ सकें।


लोकसभा में विपक्ष के नेता ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर हिंदी में एक पोस्ट में लिखा,

“अंग्रेज़ी कोई बांध नहीं, पुल है। अंग्रेज़ी कोई शर्म नहीं, ताक़त है। अंग्रेज़ी कोई ज़ंजीर नहीं – बल्कि ज़ंजीरें तोड़ने का औज़ार है।”


गांधी ने आरोप लगाया कि भारत की सत्तारूढ़ विचारधारा नहीं चाहती कि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के बच्चे अंग्रेज़ी सीखें, क्योंकि ऐसा करने से वे अपने अधिकारों की माँग कर सकते हैं और स्थापित व्यवस्थाओं को चुनौती दे सकते हैं।

“भाजपा-आरएसएस नहीं चाहती कि भारत के गरीब बच्चे अंग्रेज़ी सीखें – क्योंकि वे नहीं चाहते कि आप सवाल पूछें, आगे बढ़ें, और समानता प्राप्त करें,” उन्होंने कहा।


भाषा के वैश्विक महत्व को रेखांकित करते हुए गांधी ने कहा कि आज के समय में अंग्रेज़ी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी की मातृभाषा। उन्होंने तर्क दिया कि यह भाषा न केवल रोज़गार के रास्ते खोलती है, बल्कि युवाओं में आत्मविश्वास भी पैदा करती है।


“भारत की हर भाषा अपनी आत्मा, संस्कृति और ज्ञान लेकर चलती है। हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें संरक्षित करना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बच्चे को अंग्रेज़ी सिखाई जाए,” गांधी ने कहा।

“यही वह रास्ता है जो भारत को दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करने योग्य बनाता है और हर बच्चे को समान अवसर देता है।”


कांग्रेस नेता की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब देश में भाषा नीति और शिक्षा को लेकर बहस चल रही है, विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (ऐनएपी) के लागू होने के बाद, जिसमें प्राथमिक स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई पर ज़ोर दिया गया है।


गांधी इससे पहले भी भाजपा की शिक्षा नीति की आलोचना कर चुके हैं। उनका कहना रहा है कि यह नीति गरीबों को हाशिए पर धकेलती है और उन्हें सामाजिक-आर्थिक प्रगति में सहायक उपकरणों से वंचित कर देती है। उनकी इस नई टिप्पणी से भाषा, शिक्षा और समानता को लेकर भारत में सार्वजनिक चर्चा फिर से तेज़ होने की संभावना है।


स्पष्ट रुख अपनाते हुए, गांधी ने समावेशी और भविष्यवादी शिक्षा के प्रति अपनी पार्टी की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भाषा सीढ़ी होनी चाहिए, दीवार नहीं।


स्रोत: द हिंदू

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